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स्याम! मोहि तुम बिनु कछु न सुहाय / स्वामी सनातनदेव

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राग आनन्द, तीन ताल 7.9.1974

स्याम-मोहिं तुम बिनु कछु न सुहाय।
स्वारथ-परमारथ सब भूल्यौ, लागी बुरी बलाय॥
लागत भोग रोग सम मोकों, जोग न हिये समाय।
ग्यान-ध्यान को भाग न, पल-पल तुव सुचि सुरति समाय॥1॥
यह मन भयो तिहारो चेरो, मेरोपन न सुहाय।
अपनो अपने में न रह्यौ कछु, तुम ही रहे चलाय॥2॥
पै का करों न चैन नैनकों, रैन-दिवस अकुलाय।
लगी दरस की तरस प्रानधन! ललकि-ललकि रह जाय॥3॥
अपनो कोउ न बस मनमोहन! तुम ही करहु सहाय।
जो कछु कृपा करहु तो प्यारे! जिय की जरनि सिराय॥4॥
का-का कहि मैं करहुँ निहोरो, मति-गति रही हिराय।
मेरी मति गति हाथ तिहारे, करहु जो तुमहिं सुहाय॥5॥