भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्यामा-स्याम जुगलवर आली! जुगवत ही रहिये / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग कोशिया, तीन ताल 26.7.1974

स्यामा-स्याम जुगलवर आली! जुगवत<ref>निरखत</ref> ही रहिये।
तिन की प्रीति पुनीत मिलै तो और कहा चहिये॥1॥
रहिये सदा उन्हींकी ह्वै, फिर और न कछु गहिये।
पिया मिलें तो मिल्यौ सभी, फिर क्यों मन ललचइये॥2॥
यह मन भयो पिया को फिर अब और कहाँ जइये।
तन मन धन सब सौंपि स्यामकों उनके ह्वै रहिये॥3॥
ज्यों चाहें त्यों स्याम चलावें, निज मति बिसरइये।
रहिये सदा जन्त्र ह्वै उनकी, जडवत् ह्वै जइये॥4॥
आपो रहत न मिलत प्रान-धन, आपुहि बलि जइये।
निज बलि दै हरि ही को ह्वै फिर हरि ही ह्वै रहिये॥5॥

शब्दार्थ
<references/>