भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्याम-स्वामिनी राधिके! करौ कृपा कौ दान / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्याम-स्वामिनी राधिके! करौ कृपा कौ दान।
सुनत रहैं मुरली मधुर, मधुमय बानी कान॥
पद-पंकज-मकरंद नित पियत रहैं दृग-भृंग।
करत रहैं सेवा परम सतत सकल सुचि अंग॥
रसना नित पाती रहै दुर्लभ भुक्त प्रसाद।
बानी नित लेती रहै नाम-गुननि-रस-स्वाद॥
लगौ रहै मन अनवरत तुम में आठौं जाम।
अन्य स्मृति सब लोप हों सुमिरत छबि अभिराम॥
बढ़त रहै नित पलहिं-पल दिय तुहारौ प्रेम।
सम होवैं सब छंद पुनि, बिसरैं जोगच्छेम॥
भक्ति-मुक्ति की सुधि मिटै, उछलैं प्रेम-तरंग।
राधा-माधव सरस सुधि करै तुरत भव-भंग॥