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स्याम ने ग्वालिनि भेस बनायो / स्वामी सनातनदेव

राग शंकरा, कहरवा 15.7.1974

स्याम ने ग्वालिनि भेस बनायो।
सखी रूप करि चार सखन को दधि बेचन को मतो उपायो॥
इत लालन बनि चली लाड़िली, कछु सखियनकों सखा बनायो।
मग में घेर लई स्यामा-सखि, माँगत दान कियो मन भायो॥1॥
‘दान बिना नहिं जान देहुँगो, बड़े दिनन में औसर पायो।’
गोरे लाल ग्वाल-बालन लै भाँति-भाँति सो रारि बढ़ायो॥2॥
हा-हा खात साँवरी स्यामा, तदपि लाल दूनो सतरायो।
प्रीति-रीति पोषक नँदनन्दन, अबला ह्वै रति-कला दिखायो॥3॥
झटकि हाथ बोली तब स्यामा, ‘लालन! कबहुँ कि तुम दधि खायो।
नाँचहुँ-गावहु नैंकु लला! तो देहुँ तुमहिं गोरस मन-भायो॥4॥
गोरे ग्वाल नचन लागे तब, स्यामाजू को भाव दिखायो।
स्यामा हूँ स्यामापन भूली स्वयं स्याम ह्वै रति-रस पायो॥5॥
रसमयि केलि स्याम-स्यामा की, रति-रस में ही स्वरस समायो।
स्वरस त्यागि जे रसहिं स्याम-रस तिनहिं मिलहि यह रस अनपायो॥6॥