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स्याम ने मेरो चित चुरायो / स्वामी सनातनदेव

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राग विभास, तीन ताल 17.6.1974

स्याम ने मेरो चित्त चुरायो।
ऐसो लियो न दियो मोहिं पुनि, अपनो करि गठियायो॥
अब यह तनु मन बिनु ही आली! हरि को चलै चलायो।
अपनो मोहिं न भासत अब कछु, सपनों सब दरसायो॥1॥
मैं तो खोय चुकी सब सजनी! खोय स्याम मैं पायो।
मेरो स्याम स्याम की मैं सखि! यह सम्बन्ध सुहायो॥2॥
सब कछु खोय मिल्यौ मनमोहन, भयो सखी मन-भायो।
खोय आपुनो मिल्यौ आपुही, आपुहिं आप समायो॥3॥
यह सम्बन्ध सनातन सजनी! आपुहि स्याम सधायो।
खोयो कछू न, पायो सब कछु, सुठि संयोग सुहायो॥4॥