भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्याही की नदी / अनिता भारती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दरवाजे की घंटी बजती है
ये काम से लौट आए है
मैं लिखना छोड़
खड़ी हो जाती हूं
अपनी पत्नी होने की
जिम्मेदारी निभाने

ये घर में घुसते ही
पूछते हैं
कैसा रहा आज का दिन?
बच्चों ने तंग तो नही किया?
दिन में सो पाई?
कुछ नया लिख पायी?
बातें इनकी सुनकर
मन आह्लाद से
छलक उठा
लगा मानों मेरी कलम में
स्याही की नदी भर गई