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स्याही की नदी / अनिता भारती
Kavita Kosh से
दरवाजे की घंटी बजती है
ये काम से लौट आए है
मैं लिखना छोड़
खड़ी हो जाती हूं
अपनी पत्नी होने की
जिम्मेदारी निभाने
ये घर में घुसते ही
पूछते हैं
कैसा रहा आज का दिन?
बच्चों ने तंग तो नही किया?
दिन में सो पाई?
कुछ नया लिख पायी?
बातें इनकी सुनकर
मन आह्लाद से
छलक उठा
लगा मानों मेरी कलम में
स्याही की नदी भर गई