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स्वच्छ भावनाओं का जल / मीना अग्रवाल

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प्रदूषण ही प्रदूषण
तन में प्रदूषण
मन में प्रदूषण
वायु में प्रदूषण
जल में प्रदूषण
पृथ्वी से आकाश तक
चारों ओर है प्रदूषण !

जन-मन है व्याकुल
आज नहीं दिखाई देते
आकाश में उन्मुक्त उड़ते
या विचरण करते
रंग-बिरंगे पंखों वाले
सुंदर आकाशचारी पक्षी,
आज बेचैन है हर प्राणी
उसे नहीं मिलता
पेट भरने को साफ-सुथरा भोजन
और पीने को निर्मल पानी,
न साँस लेने के लिए
स्वच्छ हवा, सभी उलझे हैं
प्रदूषण के जाल में !

कभी कौआ आता था
श्राद्ध-पक्ष में
हमारे पितरों के रूप में
स्वीकारता था तर्पण
करता था भोजन प्रेम से
उसके दर्शन कर श्राद्ध होता था सार्थक
पर अब नहीं दिखाई देता
बुलाने पर भी नहीं आता
न प्रिय का संदेशा ही लेकर आता है
मानो उसका अस्तित्व
जैसे हो रहा हो समाप्त
आज उसके दर्शन भी हैं दुर्लभ !

गौरैया घर के आँगन में
चहकती थी हर क्षण
नन्हे-नन्हे चूजे
उसी आँगन में सीखते थे उड़ना
गौरैया सिखाती थी उन्हें चुगना दाना,
नन्ही रुनझुन बुलाती थी
उन्हें अपने पास
कहती थी चिड़िया आ
आकर दाना चुग
और कभी कहती थी
चिड़िया उड़
जब वह उसके पास
जाती उसे पकड़ने
चिड़िया फुर्र से उड़कर
बैठ जाती मुँडेर पर
और कभी खिड़की पर !

प्रदूषण के इस युग में
आज कृत्रिमता है हावी जन-मन पर
और जीवन पर !

भोजन में कृत्रिमता
वस्त्रों में बनावटीपन
व्यवहार में भी दिखावटीपन
सब तरफ व्याप्त है
कृत्रिमता का ही साम्राज्य !

जो देता है बाहर दिखाई
वैसा नहीं है
अंदर से झूठे आवरण में छिपा है
असली चेहरा
मन में जल रही है
ईर्ष्या, द्वेष, शत्रुता और वैमनस्य की आग
जिसमें झुलस रहा है
मानव का एकाकी मन !

उसने रख दिया है
नैतिक मूल्यों को ताक पर
पहुँच से बाहर
वहाँ पहुँचना है दुष्कर
बचने के लिए
प्रदूषण की मार से,
आज ज़रूरत है बचने की
विषैले प्रदूषण से !
पहले बचाना होगा
मन को और उर में व्याप्त
प्रदूषित विचारों से
फिर करनी होगी
धुलाई मन की स्वच्छ भावनाओं के जल से
जब होगा निर्मल मन
तब होगा विस्तार
हृदय के भावों का
आएगा स्वस्थ युग
मिटेंगे दुख और संकट !
फैलेगा प्रकाश
सुंदर विचारों और
भीनी भावनाओं का ! मन की रोशनी
करेगी उजास
जीवन में वैमनस्य का अंधकार
जाएगा दूर बहुत दूर
न होगी ऊँच-नीच
न होगी सत्ता की लड़ाई
सभी होंगे इक-दूजे के हमसाज,
हमसफ़र
और हमजोली बोलेंगे
मीठी बोली
लगाएँगे
सद्भावों के अक्षत
और राग की रोली !