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स्वजन को पत्र / गुलाम मोहम्मद शेख

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नीलिमा समीरा के लिए

हक्का-बक्का यात्री
गाड़ी में गर्क़ हो जाए
उससे पहले
गाड़ी
कत्थई खिड़कियों पर बादामी कोहनियाँ टेक कर
खड़े हुए प्रत्येक व्यक्ति के पेट पर से गुज़र जाती है ।

रिक्त पटरियाँ, बोगदा, पूल
प्रतीक्षागृह के कमरे की काँपती हुई कुंडी ।
मेरे शरीर के आस-पास तैरती हुई
दो मनुष्यों की गंध
क्षण-मात्र में उड़ गई ।
उसके साथ ही मेरे शरीर की गंध भी उड़ गई ।

(हमेशा जाने वाला व्यक्ति मात्र ही जाता है
ऐसा नहीं है;
प्रत्येक विदाई की बेला पर
विदा करने वाले का कोई अंश भी
गाड़ी के साथ अवश्य ही चल निकलता है ।)
 
जब लौटा
तब कोरे लिफ़ाफ़े-सा घर
मुझसे लिपट गया ।

मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : पारुल मशर