स्वतंत्र हो तुम / नीता पोरवाल
स्वतंत्र हो तुम
हम पर फिकरे कसने के लिए
निगाहों से ही साबुत हजम कर जाने के लिए
दूर से भोंडे संदेशे भेजे जाने के लिए
बालो में झांकती सफेदी भूल
यह कहने के लिए कि
“दिल तो बच्चा है जी ”
और मन मर्जी ना चलने पर
यहाँ तक कि तेज़ाब से हमारी चमड़ी झुलसाने के लिए
अच्छा है मुगालता रखना
खूबसूरत दुनिया के शहंशाह होने का
पर क्या ख्वाबो में ही नहीं?
यदि नहीं
तो आक्रोश नहीं
नफरत नहीं
तुमपर तरस के साथ
अबसे यही दुआ करुँगी
कि और और तीव्र हो
तुम्हारी स्मरन ,दृश्य और श्रवण शक्ति
कि गूंजती रहे हर पल तुम्हारे कानो में
सिर्फ टंकार उन हृदय विदारक चीखो की
बस जाए एकही तस्वीर तुम्हारी आँखों में
उन चीथड़े रह गयी जिन्दा लाशो की
हो सके तो देखना दर्पण
आज फिर से एक बार
क्या ये वही कुलदीपक
अपनी जन्मदात्री का गौरव
घोंट साँसे गर्भ में ही हमारी
किये गए व्रत और मनौतियाँ जिसके लिए
अचरज है कि
नहीं भक्षण करते चील और कव्वे भी
कभी जीवित प्राणियों का
फिर तुम...?
और हमेशा की तरह
आज भी पूर्ण स्वतंत्र हो तुम
शेष रह गए इन रिक्त स्थानों को
अपनी मर्जी से भरने के लिए