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स्वतन्त्र भारत / प्रभाकर गजभिये
Kavita Kosh से
दूसरी बार
कल जब ह्वेनसांग
स्वर्गलोक से भारत आये
वर्तमान को देखकर
वे बहुत चकराये
सातवीं सदी में जहाँ-तहाँ
अमन ही अमन था
राजा का राज होने पर भी
हिन्दुस्तान चमन था
परन्तु आज के इंडिया की
पचास फ़ीसदी जनता तो
चाह रही है खीर और हलवा-पूरी
बाक़ी बेचारी
ग़रीबी रेखा के नीचे
जीवन काट रही है,
आज़ादी का वीर सेनानी
कोने में चुपचाप खड़ा है
तो कुछ गधों (चाटुकारों) के सिर पर
विजय का सेहरा
बँधा पड़ा है— यह सब देख
स्वतन्त्रता के प्रवासी को
कुछ न सूझा— पास खड़े नेता जी से
उसने लोकतन्त्र का अर्थ पूछा
नेता जी बोले—
हमें अपनी आज़ादी पर
बहुत नाज़ है
कुछ लोगों द्वारा कुछ लोगों पर
हुकूमत करना
यही गणतन्त्र का सही राज़ है!