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स्वप्न-जल ही सही / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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119
सागर पार
रुदन कर खोजे
यादों का द्वार।
120
गुम्फित तन
बीहड़ों में भटके
कोमल मन।
121
हिचकी आए
बिछुड़ा बरसों का
मीत बुलाए।
122
बर्छी -सी यादें
चुभ -चुभ जाएँ कि
रोने भी न दें।
123
रूप तुम्हारा
शुभ मुहूर्त जैसा
मन उकेरा।
124
सपना टूटा-
कहाँ गए प्रीतम
सूनी है शय्या।
125
क्रूर था मन
निरर्थक हो गए
पूजा-वन्दन ।
126
होने को भोर
ओ मेरे चितचोर
न जाओ अभी.
127
हौले से बोलो
सोया है मुसाफि़र
अर्से के बाद।
128
अश्रु थे अर्घ्य
उम्र भर चढ़ाए
माने न देव।
129
मन बेचैन
फूटेंगे कैसे फिर
सुधा- से बैन।
130
सुख देना था
अनुताप ही दिया
तुझे सम्मना ।
131
सिंचित करो
धरा-गगन प्यासे
कल्पान्त बीता।
132
हे भीगे नैनों !
अश्रुजल पिलादो
कि कण्ठ भीगे
133
हे मरुधर!
स्वप्न-जल ही सही
दो बूँद दे दो
134
हौसला बढ़ा
हाशिये पे जो लिखा-
बीज-मन्त्र था।
135
शीत पवन
रोम -रोम दहका
पाया चुम्बन ।