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स्वप्न-सुन्दरि / कालीकान्त झा ‘बूच’

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स्वप्न सुन्दरि अहाँ जीवनक सहचरी
निन्न मे आउ अहिना घड़ी दू घड़ी
भोग भोगल जते जे बनल कल्पना,
आब भऽ गेल अछि अन्तरक अनमना
हऽम मानव अहाँ देव लोकक परी
मात्र उत्तापदायी बसंती छटा,
आब संतापदायी अषाढ़ी घटा
काट लागनि सुखायल गुलाबी छड़ी
रूप अमरित पिया कऽ अमर जे केलहुँ,
विक्ख विरहक खोआ फेर की कऽ देलहुँ?
घऽर मे जिन्दगी गऽर मरनक कड़ी
वेर वेरूक अहँक फेर अभयागतम्,
अछि सदा सर्वदा हार्दिक स्वागतम्
कप्प चाहक दुहू नैन मन तस्तरी