स्वप्न अधूरे किसके भरोसे छोड़ जाऊँ ए ज़िन्दगी / शिव रावल
तुम तो मुझे कुछ समझा ना पाई
मैं भला तुझे क्या सिखाऊँ ए-ज़िंदगी
तुझ से नाराज़ सही पर कहाँ जाऊँ ए-ज़िंदगी
मिले हैं लोग बड़े तेरे जैसे मुझे कईं मोड़ों पर
भूल गए हैं अग़र तो मैं भी क्यों याद दिलाऊँ ए-ज़िंदगी
माना के तुम संग होती हो कितने दिलाशों के साथ
हाथ छोड़ोगी इक दिन ये कैसे भूल जाऊँ ए-ज़िंदगी
खूबशूरत हो, हज़ारों रंग चढ़े है तुमपे और नायब हो तुम
तुम्हे खोने का डर है ये बात भला किसे बताऊँ ए-ज़िंदगी
लोग कहते हैं बहुत खुश हूँ मैं ज़िंदगी से अपनी
सैंकड़ों दर्द दिये हैं जो तूने, कैसे उन्हें छिपाऊँ ए-ज़िंदगी
तुम तो झाँक लेती हो मेरे कल-आज-कल में जब चाहो
मैं वह बचपन, वह जवानी वह गुज़रा वक़्त कहाँ से ले आऊँ ए-ज़िंदगी
मौत बैठी होगी ताक में मग़र डरता कौन है, स्वागत है
पर 'शिव' को बता ज़रा के स्वप्न अधूरे भला किसके भरोसे छोड़ के जाऊँ ए-ज़िंदगी