भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वप्न आंखों में सजाना छोड़ दे / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वप्न आँखों मे सजाना छोड़ दे
बेबसी से दिल लगाना छोड़ दे

मित्रता का हाथ अब आगे बढ़ा
वैर अब हम से निभाना छोड़ दे

प्रेम की कुछ भावनाएँ साथ रख
दूसरों पर मुस्कुराना छोड़ दे

बीच धारा में पड़ी जब नाव तो
आँधियों से अब डराना छोड़ दे

आग हिम्मत की हमें भी चाहिये
जुगनुओं सा झिलमिलाना छोड़ दे

भूल सब ग़म देश सीमा पर खड़े
अब यहाँ आँसू बहाना छोड़ दे

देश में सुख शांति का ही वास हो
हमको आपस में लड़ाना छोड़ दे