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स्वप्न ऐसे नयन में सजाए नहीं / पीयूष शर्मा
Kavita Kosh से
साथ जिसमे तुम्हारा-हमारा न था
स्वप्न ऐसे नयन में सजाए नहीं।
कोठरी में विरह की जला तन मगर
मन तुम्हारे हृदय तक भटकता रहा
नेह का एक चुम्बन अधर को मिला
जब हमें प्रेम का धाम तुमने कहा
प्रीत जिसमें न तुम, हम न प्रियतम बने
गीत ऐसे कभी गुनगुनाए नहीं।
रुष्ट जो भी हमारे मिलन से हुए
वे सभी फूल अनुराग खोते रहे
प्रश्न हर क्षण उठे प्रेम विन्यास पर
हम तुम्हारी सरलता संजोते रहे
तुम न जिसमे सुमन हम न खुशबू बने
पेड़ ऐसे कदाचित लगाए नहीं।
सोम भी वह अभागे गरल-सा लगा
रंग उस में तुम्हारा झलकता न था
रूप ऐसा समाहित दिखा घात में
चित्र जिसमें तुम्हारा उभरता न था
तुम न जिसमे कला, हम न मंचन बने
नाट्य ऐसे किसी को दिखाए नहीं।