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स्वप्न तो सूर्य की किरन का है / जहीर कुरैशी
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स्वप्न तो सूर्य की किरन का है
मित्र, यह रास्ता अगन किरन का है
उससे मिलता नहीं है मन मेरा
प्रश्न तो सिर्फ मेरे मन किरन का है
आमजन को समझ नहीं आता
जो गजलकार आमजन का है
हर तरफ शून्य-शून्य दिखता है
सामने रास्ता गगन किरन का है
मन से वोदूसरे की है अब तक
सिर्फ मालिक वो उसके तन का है
अम्न लाएगा अस्त्र-शस्त्रों से
वो फरिश्ता उसी अमन का है
मेरे शेरों की कहन है अपनी
और असली मजा कहन का है