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स्वप्न था यह आपका ही सूर्य धरती से उगे / विनय कुमार
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स्वप्न था यह आपका ही सूर्य धरती से उगे।
यह करिष्मा हो गया तो धूप तीखी क्यों लगे।
आपकी गति और क्या होती परमगति के सिवा
आप साँपों के सगे पर साँप कब किसके सगे।
बात करने आ गये मुंह में सड़े वादे लिये
ये सियासी लोग बोलो कौन इनके मुँह लगे।
आ गए महफूज़ भीतर क़िले में दुष्मन तमाम
कूटनीतिक तोप से कुछ इस तरह गोले दगे।
धूप सी बिखरी हुई इस ज़िंदगी की गांठ में
कुछ ग़ज़ल, कुछ इश्क, कुछ ज़द्दोजहद के रतजगे।