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स्वप्न में साँवरे तुझको न जो पाया होता / रंजना वर्मा
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स्वप्न में साँवरे तुझको न जो पाया होता
रूप ने तेरे नहीं दिल को लुभाया होता
आज मिलता न हमें स्वाद फलों का मीठे
बाग़ पुरखों ने धरा पर न लगाया होता
भोर में ठंढी हवा अब भी सुनाती नग़में
उसमें हमने जो प्रदूषण न मिलाया होता
नारियों को यहाँ सम्मान मिला होता तो
किसी कन्या ने नहीं प्राण गंवाया होता
आज भी पाप मिटाने में लगी है गंगा
काश इसमें न कभी गन्द मिलाया होता
चेत जाता जो जमाना ये समय रहते ही
तो प्रदूषण ने नहीं इतना सताया होता
दर्प मत कर जो मिला रूप धन जवानी है
ये जो चिर होते तो न मौत का साया होता