भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वप्न / निर्मल आनन्द

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँझ घिरते ही
चिड़ियों की तरह पंख पसारे
आते हैं स्वप्न

और अंधेरा घिरने के बाद
जुगनुओं में
बदल जाते हैं

रात भर जगमगाता रहता है
नींद का काला पेड़