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स्वप्न / निर्मल आनन्द
Kavita Kosh से
साँझ घिरते ही
चिड़ियों की तरह पंख पसारे
आते हैं स्वप्न
और अंधेरा घिरने के बाद
जुगनुओं में
बदल जाते हैं
रात भर जगमगाता रहता है
नींद का काला पेड़