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स्वप्न / नीरजा हेमेन्द्र

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आज अनायास हवाओं में
सुखद तरंगें प्रवाहित हो रहीं हैं,
आज अनायास दिशायें
सर्वत्र प्रकाशित हो रहीं हैं।
आज एक अनाथ बच्चें को
मातृत्व का साया मिल गया
काँपती बूढ़ी अस्थियों को
युवा सहारा मिल गया
हाँ! आज/ मानव से मानव के
हृदय मिल रहें हैं
हाँ! आज/ पाषाणों के उद्यान में
मानवता के पुष्प खिल रहें हैं
हाँ/ आज क्षितिज पर
धरती नभ सचमुच मिल रहें हैं
मैं तब तक न जागूँ
हे प्रभु!
जब तक ये स्वप्न सत्य न हो जाये
मैं तब तक न जागूँ
जब तक मानव में मानवता
समाहित न हो जाये