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स्वयं जब बोली चिड़िया / अज्ञेय

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चिड़िया को जितने भी नाम दिये थे
सब झूठे पड़ गये
स्वयं जब बोली चिड़िया
नहीं कहा कुछ मैं ने :
ताका किया उसे चुप
चिड़िया ने भी नहीं कहा चिड़िया
केवल बोली रही अप्रतिम
गुणातीत आप्लवनकारी।
बोलो, बोलो, बोलो, चिड़िया
भरो जगत् को
एक बार फिर डूब चलूँ मैं
डूब चलूँ पर डूबूँ नहीं रहूँ सुनता
सुनने में रहूँ अनश्वर बोलो चिड़िया
बोलो, बोलो, बोलो।