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स्वरों में फैल जाऊंगा / नवल शुक्ल
Kavita Kosh से
यहाँ रहूंगा
सपन के साथ
खुली पृथ्वी पर
पैरों और खुरों के पास
दो निर्मल आँखों और हाथों
चटककर चुपचाप
धीरे-धीरे आऊंगा।
आएंगे पक्षी, धूसर, चमकीले पंख
समुद्र से बादल
पृथ्वी पर फैल
झुक-झुक लहराऊंगा
फैलेंगी आँखें सीधी झुकी
समेट लेंगी पूरी सॄष्टि की माताएँ
हर तन में दूध बन उतर जाऊंगा।
भर जाएंगे देवालय
निकलेंगी आदिम किलकारियाँ
बज उठेंगे पैर
स्वरों में फैल जाऊंगा।