भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वर्ग अप्सरी / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
सरोवर जल में स्वर्ण किरण
रे आज पड़ी वलित चरण!
अतल से हँसी उमड़ कर
लसी लहरों पर चंचल,
तीर सी धँसी किरण वह
ज्योति बसी प्राणों में निस्तल!
उड़ रहे रश्मि पंख कण
जगमगाए जीवन क्षण!
सजल मानस में मेरे
अप्सरी कैसे मरे
स्वर्ग से गई उतर
कब जाने तिर भीतर ही भीतर!
आज शोभा शोभा जल
ज्योति में उठा अखिल जल,
सहज शोभा ही का सुख
लोट रहा लहरों में प्रतिपल!
जागती भावों में छवि
गा रहा प्राणों में कवि
चेतना में कोमल
आलोक पिघल
ज्यों स्वतः गया ढल!
हृदय सरसी के जल कण
सकल रे स्वर्ण के वरण
ज्योति ही ज्योति अजल जल
डूब गए चिर जन्म औ’ मरण!