भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वर्णिम प्रभात / चन्द्रमणि

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सनन सनन सनन न-न-न
बहय रे बसात
उद्गारें फूजि गेल सरगम
सुर सात
कदम्बक डारि पर राधिकाक बाँहि तऽर
मगन मन बँसुरिया बजा रे कन्हैया
चमकि उठै छमकि उठै स्वर्णिम प्रभात। सनन.....
झूमि रहल घरणी गनन झुकि गेल
छम-छम-छम नाचै बयार नटी भेल
कायम रहौ चानक चकोरीक चुलबुल
सबदिन ले‘ नेना सभक धुरखेल
आब कोनो राधा बिरहमे ने सिसकै
दुधमुँहा बच्चा ने माय केर बिलखै
मनभावन बेरमे ग्वालिन केर हेरमे
बिलटल वृन्दावन समा रे कन्हैया
चमकि उठै ....
एकहि टा धरती एकहि आसमान
एकहि टा दिनकर एकहि टा चान
सबहक ले‘ सब छै विधाताक विधना
सगरो जगत के पिता भगवान
तइयो केओ पुष्टबदन केओ कृशगात
पैघक बल पर्वत गरीबक तृणपात
द्रौपदीक चीर सन देवकीक पीड़ सन
बढ़ैत भेदभाव कें घटा रे कन्हैया
चमकि उठै.....
हीरा हेरायल अछि अबरख केर माह
कनकलता कुहरि रहल वटवृक्षक छाह
स्वत्वक संघर्षमे जोरक नगाड़ा
मिझरा लेलक कोनो निर्बल केर आह
पाण्डव केर छाती पर कौरव केर लात
हिमगिरि केर कोरामे अग्निक प्रपात
तिमिर मध्य दीप सन सुदामाक हीत सन
अनर्गल अनीतिकें हटा रे कन्हैया
चमकि उठै.....