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स्वर्ण की सौगात / महेन्द्र भटनागर
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स्वर्ण की सौगात लायी भोर !
री जगो कलियो ! उठो उपहार आँचल में भरो
सज सुनहरे रूप में, मधु भाव पाटल में भरो
- भर नया उन्मेष अंगों में
- झूम लो नव-नव उमंगों में
- गंधवह शीतल तरंगों में
- प्रीति-पुलकित हर लता चितचोर !
खोल दो अंतर झरोखे द्वार वातायन सभी
अब नहीं ऐसे अँधेरे में घिरे आनन कभी
- स्वर्ण-सागर में नहाओ रे
- आभरण से तन सजाओ रे
- नव प्रभाती गीत गाओ रे
- झमझमा कर नाच ले मन-मोर !