स्वर है वीणा का अनूदित / रिंकी सिंह 'साहिबा'
स्वर है वीणा का अनूदित,
रागिनी जैसी सुसज्जित,
मन पटल पर प्रेम का अनुबंध है हिंदी मेरी
सत्य सी सुंदर स्वयं आनंद है हिंदी मेरी।
स्वर्ग के फूलों का सौरभ जिसके शब्दों में बहे,
अर्थ में जिसके अलौकिक तेज के मोती रहे,
मन से मन का बांधती संबन्ध है हिंदी मेरी।
सत्य सी सुंदर स्वयं आनंद है हिंदी मेरी।
जिसने सूरज सा प्रकाशित विश्व भर को कर दिया,
भाव के अभिव्यक्ति को विस्तार का अवसर दिया
चांदनी की इक नदी निर्बंध है हिंदी मेरी।
सत्य सी सुंदर स्वयं आनंद है हिंदी मेरी।
जिसके आँचल में है कलरव पंछियों के गान का,
गीत है जो राष्ट के सौभाग्य का सम्मान का,
भाव है रस है अलंकृत छंद है हिंदी मेरी।
सत्य सी सुंदर स्वयं आनंद है हिंदी मेरी।
आत्मा की दिव्यता है साधुओं की साधना,
आस्था का बल है इसमें, पुण्य पावन अर्चना,
शुभ्र चिंतन का नवल प्रस्पन्द है हिंदी मेरी।
सत्य सी सुंदर स्वयं आनंद है हिंदी मेरी।
जिसकी मंथर गति में सरगम, बोल में संगीत है,
भक्ति तुलसीदास की, मीरा की पावन प्रीत है,
फूल पर भाषाओं के मकरंद है हिंदी मेरी।
सत्य सी सुंदर स्वयं आनंद है हिंदी मेरी।