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स्वविषय (गुरु जन) / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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प्रथमहि गुरु कायस्थ भयो जिन विद्या दीन्हो। दूजे गुरु संन्यासि पास जेहि मारग चीन्हाँ॥
तीते गुरु वैराग भाग कछु भलो जनाओ। चौथे गुरु गोविन्द साधु संगति लखि पाओ॥
धरनी धोखा मेटि गो, मिलो सनेही आपनो।
जाग्रत स्वपन सुषोपती, जत देखो तत सापनो॥2॥