भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वाँग / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
मिलते हैं, मिलने से बचते हुए
कोई कथा
मन ही मन रचते हुए!
अपनी कहानी
पर नायक नहीं है हम
अपनी जरूरत के
लायक नहीं है हम!
हाँ की जगह हाँ नहीं करते
न ना की जगह ना,
हाँ ना
हाँ ना
करते हैं
कोई मासूम बहाना करते हैं!
उतना ही बोलते हैं
कि चलता रहे काम
उतना ही बताते हैं
कि होती रहे राम राम!
शिकायते: प्रशंसा
की भाषा में!
प्रशंसा:
प्रतिदान की आशा में!
मन की अगर कह दी
लोग हँसेंगे
खरी-खरी कह दी
लोग डसेंगे!
सबक़ों बिना जाने
जानने लगे हैं सब,
स्वाँग को हकीकत
मानने लगे हैं सब!