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स्वागतम वन्दन / सांध्य के ये गीत लो / यतींद्रनाथ राही

हमारे गाँव में आओ
तुम्हारा
स्वागतम वन्दन!

यहाँ
माता धरित्री हैं
पिता आकाश की छाया
बिछाकर पलक लेते हैं
अतिथि जो भी यहाँ आया
नदी, पर्वत, लता, खग, मृग
सभी
अपने सहोदर हैं
हमारे सुख
हमारे दुख
सभी में
एक से स्वर हैं
तरल, ममता मयी माटी
हमारी धूल
है चन्दन!
कहीं बैठा कबीरा
बुन रहा
झीनी चदरिया है
कहीं गौ-धूलि को रंजित किये
बजती बँसुरिया है
किसी ने
छेड़कर बिरहा
अँधेरी रात गहराई
कहीं
घिरती घटाओं में
किसी की याद घुमड़ाई
पखेरू गीत गाते हैं
कहीं कलरव
कहीं गुंजन!

कमल-दल
झील में
तिरते मरालों की छटाओं में
कुहकती कोकिलें
नर्तित मयूरों की
अदाओं में
यहाँ हर खेत में सोना
हृदय में प्यार गंगाजल
नयन करते हृदय की बात
पलकों से ढलक
छल-छल
भले हों, तन हमारे माटिया
मैला
नहीं है मन!