भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वागत ओ ऋतुराज / शशि पाधा
Kavita Kosh से
बौराई अम्बुआ की डाली
कोयलिया सुर साध रही
अँखुआई हर बगिया क्यारी
पुरवैया निर्बाध बही
किरणों से लिख दिया धूप ने
स्वागत ओ ऋतुराज।
मौसम ने फिर गठरी खोली
धानी चुनरी, पीली चोली
बेल कढ़ा सतरंगी लहंगा
धरती की फिर भर दी झोली
कलियों से लिख दिया धरा ने
स्वागत ओ ऋतुराज।
बिन पँखों के उड़ती फिरती
महुए की मदमाती गंध
भंवरों ने गुनगुन के स्वर में
किया कली से नव अनुबंध
खुश्बू से लिख दिया हवा ने
स्वागत ओ ऋतुराज।
धरा गगन की मिलन रेख पर
सूरज कुछ पल देर रुका
चंचल लहरों को छूने को
चन्दा बारम्बार झुका
तारों से लिख दिया साँझ ने
स्वागत ओ ऋतुराज!