स्वागत गान / कालीकान्त झा ‘बूच’
आऊ-आऊ-आऊ सभक स्वागत करै छी,
नैन मे समाउ हृदयासन धरै छी
उल्लासक गीत कतऽ सगरो करूणा क्रन्दन
उपटि रहल विपटि रहल मैथिलीक नन्दन वन
भ्रमर झुण्ड प्यासल छथि विहग वृन्द बड़ भूखल
मुरूझल छथि आम-मऽहु रऽसक सरिता सूखल
बबुरे वन कवि कोकिल लाजे मरै छी
विद्यापति शिव स्वरूप मृत्युंजय मऽरल छथि
हमरा सबहक अभाग अजरो भऽ जऽड़ल छथि
मात्र ई समारोही गोष्ठी सँ की हेतै
स्थिति जहिना तहिना संवत एतै जेतै
मुरदा जगाउ लाउ पैर पकड़ै छी
काव्य पाठ करू मुदा कान्ह पर लिअ लाठी
एक हाथ रसक श्रोत दोसर मे खोर नाठी
पुरना किछु त्यागि-त्यागि पकड़ू किछु नऽव ढ़ंग
मोंछो पिजाउ बाउ श्रृंगारक संग-संग
अहाँ गीत गाउ मुदा हऽम हहरै छी,
अहँक चपल चरण ऋृतुराजक सूचक अछि,
अपने आत्मस्वरूप आशय तऽ ‘बूचक’ अछि,
दीन हीन साधन सभ सँ विहीन यद्यपि हम,
उद्वेलित श्रद्धा समुद्र नहि तरंगो कम
शर्वरीश स्पर्शक लेल हहरै छी
अभ्यागत आउ सभक स्वागत करै छी
विशेष:- ई विद्यापति स्मृति पर्व समारोह 1984 (आयोजन स्थल-ग्राम-बैद्यनाथपुर प्रखंड रोसड़ा, जिला-समस्तीपुर) मे आगत अतिथिक स्वागत मे स्व. कविक ओहि कालक मैथिलीक दशा पर पीड़ा भरल प्रस्तुति