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स्वागत सर्दी का ! / सरस्वती माथुर

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गुनगुनी धूप में
धुआँ-धुआँ-सी
घूम रही है
मुखरित-सी पुरवाई
... नववर्ष के द्वारे देखो
मनभावन-सी
सर्दी आई

अलाव की लहरों पर
पिघलती कोहरे की परछाई
तितली-तितली मौसम पर
गीत सुनाती
शरद ऋतु की शहनाई
नववर्ष के द्वारे देखो
मनभावन-सी सर्दी आई

प्रकृति की नीरवता में
आसमान है जमा-जमा-सा
पुष्पित वृक्षों पर सोया है
सुबह का कोहरा घना-घना-सा
उनींदे सूर्य से गिरती ओस की
बूँदों से लिपटा
सुरमई-सा थमा-थमा-सा
जाग उठा मुक्त भाव से
मौसम ने कसमसा कर
अमराई में ली अंगडाई
नववर्ष के द्वारे देखो
मनभावन-सी सर्दी आई ।