भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वाद / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
तुम्हारे होंठ
पसीने की तरह नमकीन हैं
जैसे आवेग की घड़ियों में
आँसू
जैसे मज़दूर की सूखी
रोटी पर
एक चुटकी नमक
इसी स्वाद ने आज भी
बचाए रखा है
जीवन का संतुलन
इसी स्वाद से अक्सर
बौराता हूँ मैं
महुए की शराब पीने के बाद
जिस तरह बौराते हैं किसान
पहली बार प्रेम में डूबने के बाद
जिस तरह बौराती है नारी