स्वाधीनता / फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ / अशोक पाण्डे
सेनेका द्वारा दिए गए प्रशस्ति-पत्र के बग़ैर
ओह, कितना ख़ुशीभरा
अपना काम न करना,
पढ़ने के लिए एक क़िताब
और उसे न पढ़ना !
पढ़ना उबाऊ होता है
अध्ययन बेकार
बग़ैर साहित्य के
चीज़ों को सुनहरा मढ़ देता है सूरज।
अपने मूल संस्करण के बग़ैर
चाहे-अनचाहे बहती है नदी,
और हवा, यही हवा
इतनी नैसर्गिक, सुबह की,
बिल्कुल जल्दी में नहीं
क्योंकि इसके पास समय है।
क़िताबें होती हैं स्याही के धब्बों वाले काग़ज़
अध्ययन वह चीज़ है
जहाँ कुछ नहीं और बिल्कुल नहीं के बीच का अन्तर अस्पष्ट रहता है।
जब कोहरा हो, तो और भी बेहतर
कि सम्राट सेबेस्टियन की वापसी की प्रतीक्षा की जाए
चाहे वह आए या न आए।
शानदार है कविता, और अच्छाई भी, और नृत्य
पर सबसे बढ़िया होते हैं बच्चे,
फूल, संगीत, चाँदनी और सूरज
जो सिर्फ़ तभी पाप करते हैं
जब बीच में छोड़ जाते हैं सारा कुछ
और इन सबसे ज़्यादा है ईसामसीह
जिसे अर्थशास्त्र के बारे में
कुछ नहीं आता था
और न उसने कभी दावा किया कि वह स्वाधीन है...
(1935)
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक पाण्डे