स्वाभिमानिनी / अंजना संधीर
स्वाभिमानिनी
उसने कहा
द्रौपदी शरीर से स्त्री
लेकिन मन से पुरूष है
इसीलिए पाँच-पाँच पुरुषों के साथ
निष्ठापूर्ण निर्वाह किया।
नरसंहार में भी विचलित नहीं हुई
ख़ून से सींचकर अपने बाल
तृप्ति पाई
फ़िर भूल गई इस राक्षसी अत्याचार को भी
क्या सचमुच?
मन से पुरुष स्त्रियों का यही हाल होता है
हर जगह अपमानित होना होता है
हमेशा निशाना बनना होता है।
मन से स्त्री बने पुरुष को भी
क्यों नहीं स्वीकारते सब?
सत्य ये है कि पुरुष और प्रकृति का भेद स्वीकार्य है
पुरुष समान स्त्री आकर्षित करती है
अच्छी लगती है लेकिन स्वीकार्य नहीं
क्योंकि आदमी का बौनापन जाहिर हो जाता है
मजबूत स्वाभिमानिनी स्त्री के सामने।
इसीलिए...
पहले उसका स्वाभिमान तोड़ा जाता है
फ़िर स्त्रीत्व... फ़िर कुछ और...
स्वाभिमानिनी, कौन सहेगा तुम्हारा स्वाभिमान !