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स्वीकृति / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
जीवन में हर पग पर
प्रतिकूल व्यवहारों के
नुकीले पत्थर ही
सहेजने-समेटने हैं…
जीवन जीने की इस
शर्त के साथ, कि इन
नुकीले पत्थरों पर
सारी उम्र चलना होगा
(बिना किसी सहारे के);
मगर इनकी चुभन चीख बनकर--
होंठों तक नहीं आएगी
और तलुवों के जख्म
इस सफाई से छुपाने होंगे, कि
कोई उनकी चुभन का
अहसास तक न कर पाए...!
अविश्वास के गीतों को
गुनगुनाना होगा, और होंठों पर
उभरने वाले दर्द की
एक-एक लकीर से
उदासी की नहीं
वरन खुशियों की आकृतियाँ
गढ़नी होंगी…
इस शर्त को
स्वीकारने का अर्थ
असहनीय पीड़ा के
असंख्य मोड़ों से
गुजरना है
फिर भी--
मैं आज इस शर्त को
बिना किसी शर्त के
स्वीकार करती हूँ...!