भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वीकृति / उमा अर्पिता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन में हर पग पर
प्रतिकूल व्यवहारों के
नुकीले पत्थर ही
सहेजने-समेटने हैं…
जीवन जीने की इस
शर्त के साथ, कि इन
नुकीले पत्थरों पर
सारी उम्र चलना होगा
(बिना किसी सहारे के);
मगर इनकी चुभन चीख बनकर--
होंठों तक नहीं आएगी
और तलुवों के जख्म
इस सफाई से छुपाने होंगे, कि
कोई उनकी चुभन का
अहसास तक न कर पाए...!

अविश्वास के गीतों को
गुनगुनाना होगा, और होंठों पर
उभरने वाले दर्द की
एक-एक लकीर से
उदासी की नहीं
वरन खुशियों की आकृतियाँ
गढ़नी होंगी…

इस शर्त को
स्वीकारने का अर्थ
असहनीय पीड़ा के
असंख्य मोड़ों से
गुजरना है
फिर भी--
मैं आज इस शर्त को
बिना किसी शर्त के
स्वीकार करती हूँ...!