भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वेद की सुगंध / विमल राजस्थानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

शब्दों के अर्थ गहो
भावों के सिन्धु बहो
रोपो धरती पर पग
चाहे घन-पार रहो

सुरभित साँसों के संग, गरम उसाँसों का-
उत्ताप वहन करो, वहन करो, वहन करो
छुट्टा मत छोड़ो उसे, बाँधो छवि-छंद में
एक तरफ चक्रव्यूह काशी की गलियाँ हैं
और दूसरी ओर भ्रमरखाह साँड़ फिरा करते हैं
करूण से सिक्त नयन-मेघ घिरा करते हैं
जब तक यह देह, बंधनों से कब मुक्ति मिली
धरती का ऋण भी तो रमा रंध्र-रध्र में
कविता को पनपाओ स्वेद की सुगंध में
छुट्टा मत छोड़ो उसे, बाँधो छवि-छंद में