भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वै गई निशँक आज ये री परयँक पर / नंदराम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वै गई निशँक आज ये री परयँक पर ,
बँग भौँह वारो मोहिँ अँक मो लगा गयो ।
मुरली मुकुट कटि तट पीतपट तैसे ,
अटपटी चाल चित मेरो उरझा गयो ।
कहै नन्दराम मुरि मन्द मुसकाय ,
नेक समझि न पायो कछु कान मेँ सुना गयो ।
आ गयो अचानक देखा गयो मयँक मुख ,
हाँ गयो कितै कि मोहिँ सोवत जगा गयो ।

नंदराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।