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स्व-धन / श्रीकांत वर्मा
Kavita Kosh से
सबने देखी कच्ची, मटियाई, दूधभरी मूँगफली
किसी ने नहीं, केवल तूने ही
ओ मेरी साँवरी- तू ही बो आई थी-
तूने ही देखा : पृथ्वी की नाक में
झूलता बुलाक धन!