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स्‍थाई होती है नदियों की याददाश्‍त / शिरीष कुमार मौर्य

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कितनी बारिश होगी हर कोई पूछ रहा है
कुछ पता नहीं हर कोई बता रहा है

बारिश तो बारिश की ही तरह होती है
पर लोग लोगों की तरह नहीं रहते
रहना रहने की तरह नहीं रहता
भीगना भीगने की तरह नहीं होता

नदियाँ मटमैले पानी से भरी बहने की तरह बहती हैं
बहने के वर्षों पुराने छूटे रास्‍ते उन्‍हें याद आने की तरह याद आते है
वे लौटने की तरह लौटती हैं
पर उनकी आँखें कमज़ोर होती हैं
वे दूर से लहरों की सूँड़ उठा कर सूँघती हैं पुराने रास्‍ते
और हाथियों की तरह दौड़ पड़ती हैं

बारिश नदियों को हाथियों का बिछुड़ा झुण्ड बना देती है
जो हर ओर से चिंघाड़ती बेलगाम आ मिलना चाहती हैं
किसी पुरानी जगह पर
जहाँ उनके पूर्वजों की अस्थियाँ धूप में सूखती रहीं बरसों-बरस

नदियों के पूर्वज पूर्वर्जों की तरह होते हैं
पुरखों की ज़मीन जिस पर आ बसे नई धज के लोग
नई इमारतें
वहाँ से उधेड़ी गई मिट्टी, काटे गए पेड़ और तोड़ी गई चट्टानें
पहाड़ पानी के थैले में बाँध देते हैं दुबारा
वहीं तक पहुँचाने को

वापिस लौटाने होते हैं रास्‍ते
बारिश की इसी बन्दोबस्‍ती में
लोगों की तरह नहीं रहने वाले लोगों को
छोड़नी पड़ती है ज़मीन
जो पीछे नहीं हटता ग़लती या ख़ुशफ़हमी में
मारा जाता है

नदियाँ हत्‍यारी नहीं होतीं
हत्‍यारी होती हैं लोगों की इच्‍छाएँ सब कुछ हथिया लेने की
बारिश तो बारिश की ही तरह होती है
पहाड़ों पर
मैं भी इसी बारिश के बीच रहता हूँ
भीगता हूं भीगने की ही तरह
मेरी त्‍वचा गल नहीं जाती ढह नहीं जातीं मे‍री हड्डियाँ
मैं ज्‍़यादा साफ़ किसी भूरी मज़बूत चट्टान की तरह दिखता हूँ
उस पर लगे साल भर के धब्‍बे धुल जाते हैं धुलने की तरह

कुछ अधिक तो नहीं माँगती
मेरे पहाड़ों से निकल सुदूर समन्‍दर तक जीवन का विस्‍तार करती नदियाँ

बस लोग लोगों की तरह
रहना रहने की तरह
छोड़ देना कुछ राह जो नदियों की याद में है याद की तरह

नदियों की पूर्वज धाराओं की अस्थियों पर बसी बस्तियाँ
स्‍थाई नहीं हो सकतीं
पर स्‍थाई होती है नदियों की याददाश्‍त