स्वदेशी तहरीक / त्रिलोकचन्द महरूम
वतन के दर्दे-निहां की दवा स्वदेशी है
ग़रीब क़ौम की हाजत रवा स्वदेशी है
तमाम दहर<ref>दुनिया</ref> की रूहे-रवाँ<ref>प्राणवायु</ref> है यह तहरीक<ref>आन्दोलन</ref>
शरीके हुस्ने-अमल<ref>व्यावहारिकता</ref> जा ब जा स्वदेशी है
क़रारे-ख़ातिरे-आशुफ़्ता<ref>बेक़रार दिल का क़रार</ref> है फ़ज़ा इसकी
निशाने-मंजिले, सिदक़ो-सफ़ा<ref> पवित्रता ओर सत्य की मंजिल का निशान</ref> स्वदेशी है
वतन से जिनको महब्बत नहीं वह क्या जानें
कि चीज कौन विदेशी है क्या स्वदेशी है
इसी के साये में पाता है परवरिश इक़बाल
मिसाले-साय:-ए-बाले-हुमा स्वदेशी है
इसी ने ख़ाक को सोना बना दिया अक्सर
जहां में गर है कोई कीमिया स्वदेशी है
फ़ना के हाथ में है जाने-नातवाने-वतन
बक़ा जो चाहो तो राज़े-बक़ा स्वदेशी है
हो अपने मुल्क की चीज़ों से क्यों हमें नफ़रत
हर एक क़ौम का जब मुद्दआ स्वदेशी है