भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स-हृदय यही स-विनय कहें स-कुशल सभी स-उमंग हों / नवीन सी. चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स-हृदय यही, स-विनय कहें, स-कुशल सभी, स-उमंग हों|
नये साल में, नये गुल खिलें, नई खुश्बुएं, नये रंग हों|१|

कु-मती भगे, सु-मती जगे, सु-मधुर विचार विमर्श हों|
सु-गठित समाज बनायँ और सदैव मस्त मलंग हों|२|

न बहे रुधिर, न जले जिगर, न कटे पतंग अनंत से|
न दबें कदापि अनीति से औ बिना वजह न दबंग हों|३|

विधिनानुसार चले जगत, अ-घटित घटे न कहीं कभी|
सदुपाय मीर करें वही - चहुँ ओर मौज तरंग हों|४|

सु-मनन करें, सु-जतन करें, अभिनव गढ़ें, अनुपम कहें|
वसुधा सवाल उठा रही, क्यूँ न फिर से ग़ालिब-ओ-गंग हों|५|