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हँसती-खिलती सी गुड़िया, इक लम्हे में बेकार हुई / श्रद्धा जैन
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					तेरे हाथों से छूटी तो पल भर में मिस्मार हुई
भोली-भाली सी गुड़िया इक, लम्हे में बेकार हुई
 
ज़ख्मों पर मरहम रखने को, उसने हाथ बढाया था 
मेरे जीवन की पीड़ा ही,  दोधारी तलवार हुई 
 
गर्म फ़ज़ा झुलसाएगी, पैरों में छाले लाएगी
जो देती थी साया मुझको, दूर वही दीवार हुई 
 
जिसने मुझे रब से माँगा था, दिन और रात दुआओं में
वो कुर्बत मालूम नहीं क्यूँ, उसके दिल पर भार हुई
मुद्दत से ख़ामोश हैं लब और सन्नाटा है ज़हन में पर
एक अजब सी तन्हाई, महसूस मुझे इस बार हुई 
 
जिसके कारण खिलना सीखा जीवन के हर लम्हे ने 
शुकराना उसका श्रद्धा जो महकी और गुलज़ार हुई 
 
	
	

