भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हँसते फूल / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरस जाये बादल मोती।
या गिराये उन पर ओले।
कीच में उन्हें डाल दे या।
सुधा जैसे जल से धो ले।1।

हवा उन को चूमे आकर।
या मिला मिट्टी में देवे।
डाल दे उन्हें बलाओं में।
या बलाएँ उन की लेवे।2।

लुभाएँ गूँज गूँज भौंरा।
या नरम दल उन के मसले।
रसिकता दिखलाये दिन दिन।
या खिसक जाये सब रस ले।3।

तितलियाँ छटा दिखाएँ आ।
रंगतें या उनकी खोयें।
गलें मिल मिल कर के नाचें।
या दुखाएँ उनके रोयें।4।

रहें चुभते सब दिन काँटे।
या बनें उन के रखवाले।
ओस की बूँदों से विलसें।
या पड़ें कीटों के पाले।5।

सताएँ किरणें आकर या।
हार सोने का पहनाएँ।
बडे उजले दिखलाएँ दिन।
या अँधेरी रातें आएँ।6।

प्यार की आँखों से देखे।
या उन्हें चुन, भर ले डाली।
छिड़क कर पानी तर रक्खे।
या सुई से छेदे माली।7।

नहीं उनको इस की परवा।
एक रस रहने वाले हैं।
उन्हें किस ने रोते देखा।
फूल तो हँसने वाले हैं।8।