भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हँसना तो अपने हाथ में हो / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
गमों की आँधी
साथ में हो,पर
हँसना तो
अपने हाथ में हो
यही सोचकर कितने
दरिया पार हो गये
पत्थर भी जो साथ चले
वो भी
पानी की धार हो गये
किसी की मिट्टी में शामिल होकर
जाना सच्चाई को
ऊपर -ऊपर हरियाली है
नीचे मिट्टी खाली है
कोई हवा बही होगी
जो पत्ता - पत्ता चुप्पी साधे
सभी विवश मौसम के आगे
किन्तु, हार किसने मानी
सबसे बड़ा है बल संकल्प
झरने के डर से
गुलाब का खिलना नहीं रुके
खुशियों के लिबास में
गम ख़ुशबू की तरह लगे
रोते -रोते मुस्का देना
ग़जब हुनर है
बच्चों में
सब रोना-धोना
भूल गये जो
बस दो-चार खिलौनों में
हम सब
उस मैदान में डटे
जहाँ हमारी हार हुई तो
प्रतिफल मीठे
और हो गये