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हँसमुख दम्पति / अनुभूति गुप्ता
Kavita Kosh से
डूब जाता है
स्नेह का सूरज
पलभर में
इक सुनहरी किरण की
तलाश में,
बरसों तक...
जिन बच्चों को
धरा रूपी माता ने
अपनी गोद में ममता से
सहेजे रखा था
वही उसे बेसहारा
दर-बदर ठोकर खाने को
छोड़ देते हैं
वक्त के थपेड़े पड़ने पर
जिस पिता की
छाँव में रहा
जिन बच्चों का कोमल मन
अब-
वे ही परायेपन से देखते हैं
कैसे ’हँसमुख दम्पति’
अपनी लाचारी पर हँसते हैं
अकेलेपन की खिड़की से
उदासी सूरज की तकते हैं।