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हँसि हँसि लिखथ पाँती बाँचहु हो भइया / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
हँसि हँसि लिखथ<ref>लिख रही है</ref> पाँती<ref>पत्र, चिट्ठी</ref> बाँचहु<ref>पढ़ो</ref> हो भइया।
चंपा के चोरवा<ref>चोर की</ref> के दीहऽ<ref>देना</ref> तूँ सजइया॥1॥
रउदा<ref>धूप, रौंद</ref> में रहतन जयतन रउदाइए।
घममा<ref>धूप, घाम</ref> में रहतन जयतन पिघलाइए॥2॥
सरदी के मारे चोर जयतन सरदाइए।
अँचरा में बाँधब रहतन लोभाइए॥3॥
शब्दार्थ
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