हँसो कि सारा जग भर जाए
पथ को वृन्दावन कर जाए
यूँ तो उमर बोझ होती है
पीड़ा की गढ़री ढोती है
किन्तु कहीं इसके भीतर भी
सपनों की नगरी सोती है
भले कभी आँसू ढर जाए
पथ को वृन्दावन कर जाए
आँसू तो सुख में भी बहते
दुःख के संग सदा जो रहते
ये हैं गहराई के संगी
दुहरी कथा सदा से कहते
भारीपन अपने घर जाए
पथ को वृन्दावन कर जाए