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हंसते हंसते खफ़ा हो गए हम / मेला राम 'वफ़ा'

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हंसते हंसते खफ़ा हो गए हम
यक बयक क्या से क्या हो गये हम

उम्र को सुख का न इक सांस आया
जिस के दुख की दवा हो गये हम

आइना है जबीं बे दिली का
किस के दर्द आश्ना हो गये हम

और ही है अदा बरहमी की
और भी दिलरुबा हो गये हम

हाथ खेंचा जफ़ा से भी तुम ने
किस क़दर बे-वफ़ा हो गये तुम

हो गयी सब ख़ुदाई तुम्हारी
होते होते ख़ुदा हो गये हम

कितने नादां हो पूछते हो
किस पे गश ऐ 'वफ़ा' हो गये हम।