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हंस का इम्तहान बाकी है / जहीर कुरैशी

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हंस का इम्तहान बाकी है
एक ऊँची उड़ान बाकी है

मेरे पैरों तले धरा न सही
शीश पर आसमान बाकी है

सूखे पनघट के घाट पर अब तक
रस्सियों का निशान बाकी है

गाँव में खण्डहर की सूरत में
उस हवेली की शान बाकी है

उसका रुँधने लगा गला लेकिन
आँसुओं की ज़ुबान बाकी है

आँकड़ों के सिवा, गरीबों पर
झुग्गियों का बयान बाकी है

यात्रा खत्म हो गई लेकिन
यात्रा की थकान बाकी है